मुन्ना बाबु के कारनामे प्रकरण - १ " गांव का माहौल "

प्रकरण - १ " गांव का माहौल "



गांव के एक सुखी सम्पन्न परिवार की कहानी है। घर की मालकिन का नाम शीला देवी था। मालिक का नाम तो पता नहि पर सब उसे चौधरी कहते थे। शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुछ खास नही थी, रंग भी थोडा सांवला-सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था। मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनक शरीर भरना शुरु हो गया और कुछ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी खासी स्वस्थ भरे-पुरे शरीर की मालकिन बन गई। पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नजरे इनायत होती थी वह अब सबकी नजरों की चाहत बन चुकी थी। उसके बदन में सही जगहों पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुक्ता फुटने लगी थी। छोटी छोटी छातियां अब उन्नत वक्ष-स्थल में तबदील हो चुकी थी। बाहें जो पहले तो लकडी के डन्डे-सी लगती थी अब काफी मांसल हो चुकी थी। पतली कमर थोडी मोटी हो गई थी और पेट पर मांस चड जाने के कारण गुदाजपन आ गया था। और झुकने या बैठने पर दो मोटे-मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे। चुतडों में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चुतड लोगो के दिल धडका देते थे। जांघे मोटी मोटी केले के खम्भो में बदल चुकी थी। चेहरे पर एक कशीश-सी आ गई थी और आंखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बोतलें शराब पी रखी हो। सुंदरता बढने के साथ साथ उसको संभाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वह अपने आप को खुब सजा संवार के रखती थी। बोल-चाल में बहुत तेज-तर्रार थी और सारे घर के काम वह खुद ही नौकरो की सहायता से करवाती थी। उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बांध कर रखा हुआ था। चौधरी अपनी बीवी से डरता भी था इसलिए कहीं और मुंह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी। बीवी जब आई थी तो बहुत सार दहेज ले के आई थी इसलिये उसके सामने मुंह खोलने में भी डरता था, बीवी भी उसके उपर पुरा हुकुम चलाती थी। उसने सारे घर को एक तरह से अपने कबजे में कर के रखा हुआ था। बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुंचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती की उसकी सीट्टी पीट्टी गुम हो जाती थी। काम-वासना के मांमले में भी वह बीवी से थोडा उन्नीश ही पडता था। शीला देवी कुछ ज्यादा ही गरम थी। उसका नाम ऐसी औरतों में सामील होता था जो खुद मर्द के उपर चड जाये। गांव की लग-भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फसने पर उसे ही याद करती थी। चौधरी बेचारा तो बस नाम का ही चौधरी था असली चौधरी तो चौधराईन थी। उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजु कहा करते थे। देखने में बचपन से सुंदर था, थोडी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा सादा लडका था। जैसे ही थोडा बडा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गांव के माहोल से दूर भेज दिया जाये ताकि इसकी पढाई लिखाई अच्च्छे से हो और गांव के लौंडों के साथ रह कर बिगड ना जाये। चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशीश की हमार एक ही तो लडका है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो ?  मगर उसकी कौन सुनता, लडके को उसके मामा के पास भेज दिया गया जो की शहर में रह कर व्यापार करता था। मामा को भी बस एक लडकी ही थी। शीला देवी का यह भाई उस से उमर में बडा था और वह खुशी खुशी अपने भांजे को अपने घर रखने के लिये तैयार हो गया था।
दिन इसी तरह बित रहे थे। चौधराईन के रुप में और ज्यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सूखता जा रहा था। अब अगर किसी को बहुत ज्यादा दबाया जाये तो वह चीज इतना दब जाती है की उठना ही भूल जाती है। यही हाल चौधरी का भी था। उसने भी सब कुछ लगभग छोड ही दीया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निठ्ठले मर्दों के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता। शाम होने पर चुप चाप सटक लेता और एक बोतल देसी चढा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पड जाता। नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नहिं तो अगर पता चल जाता की चौधराईन जली-भूनी बैठी है तो खाना भी नही मांगता और सो जाता। लडका छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चांदी रहती थी क्यों की चौधराईन बहुत खुश रहती थी। घर में तरह तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नहि करना पडता था।

एसे ही दिन महिने साल बितते गये, लडका अब सत्रह बरस का हो चुका था। थोडा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी कि परीक्षा उसने दे दी थी। परीक्षा जब खतम हुई तो शहर में रह कर क्या करता ?, शीला देवी ने बुलवा लिया। अप्रेल में परीक्षा के खतम होते ही वह गांव वापस आ गया। लौंडे पर नई-नई जवानी चढी थी। शहर की हवा लग चुकी थी जीम जाता था सो बदन खूब गठीला हो गया था। गांव जब वह आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई। मां ने खूब जम के खिलया पीलया। लडके का मन भी लग गया। पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीजों से मन उब-सा गया। अब शहर में रहने पर स्कुल जाना ट्युशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहां गांव में तो करने धरने के लिये कुछ था ही नही, दिन भर बैठे रहो। ईसलिये उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी। शीला देवी ने कहा कि देख बेटा मैं तो तुझे गांव के ईसी गन्दे माहौल से दूर रखने के लिये शहर भेजा था, मगर अब तु जिद कर रहा है तो ठीक है, गांव के कुछ अच्छे लडकों के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फूटबाल खेल ले या फिर घुम आया कर मगर एक बात और शाम में ज्यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तु। राजु इस पर खुश हो गया और बोला ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दुन्गा। राजु लडका था, गांव के कुछ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घुमना फिरना शुरु कर दिया। सुबह शम उनकी क्रिकेट भी शुरु हो गई। राजु का मन अब थोडा बहुत गांव में लगना शुरु हो गया था। घर में चारो तरफ खुशी का वातावरण था क्यों की आज राजु का जनम-दिन था। सुबह उठ कर शीला देवी ने घर की साफ सफाई करवाई, हलवाई लगवा दीया और खुद भी शाम की तैयारियों में जुट गई। राजु सुबह से बाहर ही घुम रहा था। पर आज उसको पुरी छूट मीली हुई थी। तकरीबन १२ बजे के आस पास जब शीला देवी अपने पति को कुछ काम समझा कर बाजार भेज रही थी तो उसकी मालिश करने वाली आया आ गई।
शीला देवी उसको देख कर खुश होती हुई बोली चल अच्छा किया आज आ गई, मैं तुझे खबर भिजवाने ही वाली थी, पता नही दो तीन दिन से पीठ में बडी अकडन-सी हो रही है। आया बोली मैं तो जब सूनी की आज मुन्ना बाबु का जनम-दिन है तो चली आई की कहीं कोई काम न नीकल आये। काम क्या होना था, ये जो आया थी वह बहुत मुंह लगी थी चौधराईन की। आया चौधराईन की कामुकता को मानसिक संतृष्टी प्रदान करती थी। अपने दिमाग के साथ पुरे गांव की तरह तरह की बाते जैसे कि कौन किसके साथ लगी है, कौन किससे फसी है और कौन किसपे नजर रखे हुए है आदि करने में उसे बडा मजा आता था। आया भी थोडी कुत्सित प्रवृत्ती की थी उसके दिमाग में जाने क्या क्या चलता रहता था। गांव, मुहल्ले की बाते खूब नमक मिर्च लगा कर और रंगीन बना कर बताने में उसे बडा मजा आता था। ईसलिये दोनो की जमती भी खूब थी। तो फिर चौधराईन सब कामो से फूरसत पा कर अपनी मलीश करवाने के लिये अपने कमरे में जा घुसी। दरवजा बंध करने के बाद चौधराईन बिस्तर पर लेट गई और आया उसके बगल में तेल की कटोरी ले कर बैठ गई। दोनो हाथो में तेल लगा कर चौधराईन की साडी को घुटनो से उपर तक उठाते हुए उसने तेल लगाना शुरु कर दिया। चौधराईन की गोरी चीकनी टांगो पर तेल लगाते हुए आया की बातो का सिलसिला शुरु हो गया था। आया ने चौधराईन की तारिफों के फूल बांधना शुरु कर दिया था। चौधराईन ने थोडा सा मुस्कुराते हुए पुछा और गांव का हाल चाल तो बता, तु तो पता नही कहां मुंह मारती रहती है, मेरी तारिफ तु बाद में कर लेना। आया के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई क्या हाल चाल बताये मलकिन, गांव में तो अब बस जिधर देखो उधर जोर जबरदस्ती हो रही है, परसों मुखिया ने नंदु कुम्भार को पिटवा दीया पर आप तो जानती ही हो आज कल के लडकों को, ****का बेटा, उंच नीच का उन्हे कुछ ख्याल तो है नहि, नन्दु का बेटा शहर से पढाई कर के आया है पता नहि क्या क्या **** के आया है, उसने भी कल मुखिया को अकेले में धरदबोचा और लगा दी चार-पांच पटखानी, मुखिया पडा हुआ है अपने घर पर अपनी टूटी टान्ग ले के और नन्दु का बेटा गया थाने हा रे, इधर काम के चक्कर में तो पता ही नही चला, मं भी सोच रही थी की कल पुलिस क्यों आई थी, पर एक बात तो बता मैने तो यह भी सुना है की मुखिया की बेटी का कुछ चक्कर था नन्दु के बेटे से सही सुना है मलकिन, दोनो मेइं बडा जबरदस्त नैन-मटक्का चल रहा है, इसी से मुखिया खार खाये बैठा था बडा खराब जमाना आ गया है, लोगों में एक तो उंच नीच का भेद मीट गया है, कौन किसके साथ घुम फिर रहा है यह भी पता नही चलता है, खैर और सुना, मैने सुना है तेरा भी बडा नैन-मटक्का चल रहा है आज कल उस सरपंच के छोरे के साथ, साली बुढिया हो के कहां से फांस लेती है जवान जवान लौन्डो को

आया का चेहरा कान तक लाल हो गया था, छिनाल तो वो थी मगर चोरी पकडे जाने पर चेहरे पर शरम की लाली दौड गई। शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली अरे मलकिन आप तो आज कल के लौंडो का हाल जानती ही हो, सब साले छेद के चक्कर में पगलाये घुमते रहते है।
पगलाये घुमते है या तु पागल कर देती है,,,,,,,,,,,अपनी जवानी दीखा के
आया के चेहरे पर एक शर्मिली मुस्कुराहट दौड गई, क्या मालकिन मैं क्या दीखाउन्गी, फिर थोडा बहुत तो सब करते है !
थोडा सा साली क्यों झूट बोलती है तु तो पूरी की पूरी छिनाल है, सारे गांव के लडको को बिगाड के रख देगी,,,,,,,,,,
अरे मालकिन बिगडे हुए को मैं क्या बिगाडुंगी, गांव के सारे छोरे तो दिन रात इसि चक्कर में लगे रहते हैं।
चल साली, तु जैसे दूध की धुली है
अब जो समझ लो मालकिन, पर एक बात बता दुं आपको की ये लौंडे भी कम नहीं है गांव के तालाब पर जो पेड लगा हुआ है ना उस पर बैठ कर खूब तांक झांक करते है
अच्छा, पर तुम लोग क्या भगाती नही उन लौन्डो को ? 
घने घने पेड है चारो तरफ, अब कोइ उनके पीछे छुपा बैठा रहेगा तो कैसे पता चलेगा, कभी दिख जाते है कभी नही दिखते
बडे हरामी लौंडे है, औरतो को चैन से नहाने भी नही देते
लौंडे तो लौंडे, छोरिया भी कोइ कम हरामी नही है
क्यों वो क्या करती है
अरे मालकिन दीखा दीखा के नहाती है
आच्छा, बडा गन्दा महौल हो गया है गांव का
जो भी है मालकिन अब जीना तो इसी गांव में है ना
हारे वो तो है, मगर मुझे तो मेरे लडके के कारण डर लगता है, कहीं वो भी ना बिगड जाये
इस पर आया के होंठों की कमान थोडी-सी खींच गयी। उसके चेहरे की कुटील मुस्कान जैसे कह रही थी की बिगडे हुए को और क्या बिगाडना। मगर आया ने कुछ बोला नहि। शीला देवी हसते हुए बोली अब तो लडका भी जवान हो गया है, तेरे जेसी रन्डीयों की नजरों से तो बचाना ही पडेगा नहि तो तुम लोग कब उसको हजम कर जाओगी ये भी पता नही लगेगा
अब मालकिन झुठ नही बोलुन्गी पर अगर आप सच सुन सको तो एक बात बोलु
हा बोल क्या बात
चलो रहने दो मालकिन कह कर आया ने पुरा जोर लगा के चौधराईन की कमर को थोडा कस के दबाया, गोरी चमडी लाल हो गई, चौधराईन के मुंह से हल्की सी आह निकल गई, आया का हाथ अब तेजी से कमर पर चल रहा था। आया के तेज चलते हाथो ने चौधराईन को थोडी देर के लिये भूला दिया की वो क्या पुछ रही थी। आया ने अपने हाथो को अब कमर से थोडा निचे चलाना शुरु कर दीया था। उसने चौधराईन की पेटीकोट के अन्दर खुसी हुइ साडी को अपने हाथो से निकाल दीया और कमर की साइड में हाथ लगा कर पेटीकोट के नाडे को खोल दिया। पेटीकोट को ढीला कर उसने अपने हाथो को कमर के और निचे उतार दिया। हाथो में तेल लगा कर चौधराईन के मोटे-मोटे चुतडो के मांसो को अपनी हथेलीं में दबोच-दबोच कर दबा रही थी। शीला देवी के मुंह से हर बार एक हल्की-सी आनन्द भरी आह निकल जाती थी। अपने तेल लगे हाथो से आया ने चौधराईन की पीठ से लेकर उसके मंसल चुतडों तक के एक-एक कस बल को ढीला कर दिया था। आया का हाथ चुतडों को मसलते मसलते उनके बीच की दरार में भी चला जाता था। चुतडों की दरार को सहलाने पर हुई गुद-गुदी और सिहरन के करण चौधराईन के मुंह से हल्की-सी हसी के साथ कराह निकल जाती थी। आया के मालिश करने के इसी मस्ताने अन्दाज की शीला देवी दिवानी थी। आया ने अपना हाथ चुतडों पर से खींच कर उसकी साडी को जांघो तक उठा कर उसके गोरे-गोरे बिना बालों की गुदाज मांसल जांघो को अपने हाथो में दबा-दबा के मालिश करना शुरु कर दिया। चौधराईन की आंखे आनन्द से मुंदी जा रही थी। आया का हाथ घुटनो से लेकर पुरे जान्घो तक घुम रहे थे। जांघो और चुतडों के निचले भाग पर मालिश करते हुए आया का हाथ अब धीरे धीरे चौधराईन की चुत और उसकी झांठों को भी टच कर रहा था। आया ने अपने हाथो से हल्के हल्के चुत को छुना करना शुरु कर दिया था। चुत को छुते ही शीला देवी के पुरे बदन में सिहरन-सी दौड गई थी। उसके मुंह से मस्ती भरी आह निकल गई। उस से रहा नही गया और पीठ के बल होते हुए बोली साली तु मानेगी नही
मालकिन मेरे से मालिश करवाने का यही तो मजा है
चल साली, आज जल्दी छोड दे मुझे बहुत सारा काम है
अरे काम-धाम तो सारे नौकर चाकर कर ही रहे है मालकिन, जरा अच्छे से मालिश करवा लो इतने दिनो के बाद आइ हुं, बदन हल्का हो जायेगा
चौधराईन ने अपनी जांघो को और चौडा कर दिया और अपने एक पैर को घुटनो के पास से मोड दिया, और अपनी छातीयों पर से साडी को हटा दी। मतलब आया को ये सीधा संकेत दे दिया था की कर ले अपनी मरजी की जो भी करना है मगर बोली हट्ट साली तेरे से बदन हल्का करवाने के चक्कर में नही पडना मुझे आज, आग लगा देती है साली चौधराईन ने अपनी बात अभी पुरी भी नही की थी और आया का हाथ सीधा सारी और पेटीकोट के नीचे से शीला देवी की बुर पर पहुंच गया था। बुर की फांको पर उन्गलियां चलाते हुए अपने अंगुठे से हलके से शीला देवी की चुत की क्लीट को आया सहलाने लगी। चुत एकदम से पनीया गई। आया ने बुर को एक थपकी लगाई और मालकिन की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली पानी तो छोड रही हो मालकिन। ईस पर शीला देवी सिसकते हुए बोली साली ऐसे थपकी लगायेगी तो पानी तो निकलेगा ही फिर अपने ब्लाउस के बटन को खोलने लगी। आया ने पुछा पुरा करवाओगी क्या मालकिन।
पुरा तो करवाना ही पडेगा साली अब जब तुने आग लगा दी है तो
आया ने मुस्कुराते हुए अपने हाथो को शीला देवी की चुंचियों कि ओर बढा दिया और उनको हल्के हाथो से पकड कर सहलाने लगी जैसे की पुचकार रही हो। फिर अपने हाथो में तेल लगा के दोनो चुचों को दोनो हाथो से पकड के हल्के से खिंचते हुए निप्पलो को अपने अंगुठे और उन्गलियों के बिच में दबा कर खिंचने लगी। चुचियों में धिरे-धिरे तनाव आना शुरु हो गया। निप्पल खडे हो गये और दोनो चुचों में उमर के साथ जो थोडा बहुत थल-थलापन आया हुआ था वो अब मांसल कठोरता में बदल गया। उत्तेजना बढने के कारण चुचियों में तनाव आना स्वाभाविक था। आया की समज में आ गया था की अब मालकिन को गरमी पुरी चढ गई है। आया को औरतो के साथ खेलने में उतना ही मजा आता था जीतना मजा उसको लडको के साथ खेअलने में आता था। चुचियों को तेल लगाने के साथ-साथ मसलते हुए आया ने अपने हाथो को धीरे धीरे पेट पर चलाना शुरु कर दिया था। चौधराईन की गोल-गोल नाभि में अपने उन्गलियों को चलाते हुए आया ने फिर से बाते छेडनी शुरु कर दी।
मालकिन अब क्या बोलु, मगर मुन्ना बाबु (चौधराईन का बेटा) भी कम उस्ताद नहि है मस्ती में डुबी हुई अधखुली आंखो से आया को देखते हुए शीला देवी ने पुछा
क्यों, क्या किया मुन्ना ने तेरे साथ
मेरे साथ क्या करेन्गे मुन्ना बाबु, आप गुस्सा ना हो तो एक बात बताउ आपको। चौधराईन ने अब अपनी आंखे खोल दी और चौकन्नी हो गई
हा हा बोल ना क्या बोलना है
मालकिन अपने मुन्ना बाबु भी कम नही है, उनकी भी संगत बिगड गई है
ऐसा कैसे बोल रही है तु
ऐसा इसलिये बोल रही हुं क्यों की, अपने मुन्ना बाबु भी तालाब के चक्कर खूब लगाते है
इसका क्या मतलब हुआ, हो सकता है दोस्तों के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा
खाली तैरने जाये तब तो ठीक है मालकिन मगर, मुन्ना बाबु को तो मैने कल तालाब किनारे वाले पेड पर चढ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है।
सच बोल रही है तु 
और क्या मालकिन, आप से झुठ बोलुन्गी, कह कर आया ने अपना हाथ फिर से पेटीकोट के अंदर सरका दिया और चुत से खेलने लगी। अपनी मोटी मोटी दो उन्गलियों को उसने गचक से शीला देवी की बुर में पेल दिया। चुत में उन्गली के जाते ही शीला देवी के मुंह से आह निकल गई मगर उसने कुछ बोला नही। अपने बेटे के बारे में जानकर उसका ध्यान सेक्ष से हट गया था और वो उसके बारे और ज्यादा जानना चाहती थी। इसलिये फिर आया को कुरेदते हुए कहा
अब मुन्ना भी तो जवान हो गया है थोडी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती है, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गांव के छोरो के साथ
पर मालकिन मैने तो उनको शाम में अमिया (आमो का बागीचा) में गुलाबो के चुचे दबाते हुए भी देखा है
चौधराईन का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा, उसने आया को एक लात कस के मारी, आया गीरी तो नही मगर थोडा हील जरुर गई। आया ने अपनी उन्गलिओं को अभी भी चुत से नही निकलने दिय। लात खाकर भी हसती हुइ बोली मालकिन जीतना गुस्सा निकालना हो निकाल लो मगर में एकदम सच-सच बोल रही हु। झुठ बोलु तो मेरी जुबान कट के गीर जाये मगर मुन्ना बाबु को तो कई बार मैने गांव की औरते जीधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घुमते हुए देख है
हाय दैय्या उधर क्या करने जाता है ये सुवर
बसन्ती के पीछे भी पडे हुए है छोटे मालिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है,,,,,, साली को जैसे ही छोटे मालिक को देखती है और ज्यादा चुतड मटका मटका के चलने लगती है, छोटे मालिक भी पुरे लट्टु हुए बैठे है
क्या जमाना आ गया है, इतना पढने लिखने का कुछ फायदा नही हुआ, सब मीट्टी में मीला दिया, इन्हि भन्गिनो और धोबनो के पिछे घुमने के लिये इसे शहर भेजा था
दो मोटी-मोटी उन्गलियों को चुत में कचा-कच पेलते, निकालते हुए आया ने कहा,
आप भी मालकिन बेकार में नाराज हो रही हो, नया खून है थोडा बहुत तो उबाल मरेगा ही, फिर यहां गांव में कौन-सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिये थोडा बहुत इधर उधर कर लेते है
नही रे, मैन सोचती थी कम से कम मेरा बेटा तो ऐसा ना करे
वाह मालकिन आप भी कमाल की हो, अपने बेटे को भी अपने ही जैसा बना दो
क्या मतलब है रे तेरा
मतलब क्या है आप भी समझती हो, खुद तो आग में जलती रहती हो और चाहती हो की बेटा भी जले
नजरे छुपाते हुए चौधराईन ने कहा
मैन कौन सी आग में जलती हु रे कुतिया 
क्यों जलती नही हो क्या, मुझे क्या नही पता की मर्द के हाथो की गरमी पाये आपको ना जाने कितने साल बित चुके है, जैसे आपने अपनी इच्छाओं को दबा के रखा हुअ है वैसे ही आप चाहती हो छोटे मालिक भी करे
ऐसा नही है रे, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है
बच्चा है, अरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मां बना दे और आप कहती हो बच्चा है।
चल साली क्या बकवास करती है
आया ने बुर की क्लिट को सहलाते हुए और उन्गलियों को पेलते हुए कहा मेरी बाते तो बकवास ही लगेन्गी मगर क्या आपने कभी छोटे मालिक का औजार देखा है
दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम तेरे बेटे की उमर का है
आया ने मुस्कुराते हुए कहा- बेशरम बोलो या फिर जो मन में आये बोलो मगर मालकिन सच बोलु तो मुन्ना बाबु का औजार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी कह कर चुप हो गई और चौधराईन की दोनो टांगो को फैला कर उसके बिच में बैठ गई। फिर धीरे से अपनी जीभ को बुर की क्लिट पर लगा कर चलाने लगी। चौधराईन ने अपनी जांघो को और ज्यादा फैला दिया, चुत पर आया की जीभ गजब का जादु कर रही थी। आया के पास २५ साल का अनुभव था हाथो से मालिश करने का मगर जब उसका आकर्षण औरतों की तरफ बढा तो धीरे धीरे उसने अपने हाथो के जादु को अपनी जुबान में उतार दिया था। जब वो अपनी जीभ को चुत के उपरी भाग में नुकिला कर के रगडती थी तो शीला देवी की जलती हुई बुर ऐसे पानी छोडती थी जैसे कोइ झरना छोडता था। बुर के एक एक पपोटे को अपने होठों के बिच दबा दबा के ऐसे चुसती थी की शीला देवी के मुंह से बार-बार सिसकारियां फुटने लगी थी। गांड हवा में ४ इन्च उपर उठा-उठा के वो आया के मुंह पर रगड रही थी। शीला देवी काम-वासना की आग में जल उठी थी। आया ने जब देखा मालकिन अब पुरे उबाल पर आ गई है तो उसको जलदी से झडाने के इरादे से उसने अपनी जुबान हटा के फिर कचाक से दो मोटी उन्गलियां पेल दी और गचा-गच अन्दर बाहर करने लगी। आया ने फिर से बातों का सिलसिला शुरु कर दिया
मालकिन, अपने लिये भी कुछ इन्तजाम कर लो अब,
क्या मतलब है रीएए तेराआ उईईई श्श्श्शीईई जलदी जलदी हाथ चला साली
मतलब तो बडा सीधा सादा है मालकिन, कब तक ऐसे हाथो से करवाती रहोगी
तो फिर क्या करु रे, साली ज्यादा दीमाग मत चला हाथ चला
मालकिन आपकी बुर मंगती है लंड का रस और आप हो की इसको खीरा ककडी खीला रही हो
चुप साली, अब कोइ उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की
अच्छा आपको कैसे पता की आपकी उमर बित गई है, जरा सा छु देती हु उसमे तो पनिया जाती है आपकी और बोलती हो अब उमर बित गई
नही रे,,, लडका जवान हो गया, बिना मर्द के सुख के इतने दिन बित गये अब क्या अब तो बुढिया हो गई हुं
क्या बात करती हो मालकिन, आप और बुढिया ! अभी भी अच्छे अच्छो के कान कट दोगी आप, इतना भरा हुआ नशिला बदन तो इस गांव के आस-पास के चार सौ गांव में ढुंढे नही मिलेगा।
चल साली क्यों चने के झाड पर चढा रही है
क्या मालकिन मैन् क्यों ऐसा करुन्गी, फिर लडका जवान होने का ये मतलब थोडे ही है की आप बुढिया हो गई हो क्यों अपना सत्यानाश करवा रही हो
तु मुझे बिगाडने पर क्यों तुली हुइ है
आया ने इस पर हस्ते हुए कहा, थोडा आप बिगडो और थोडा छोटे मालिक को भी बिगडने का मौका दो
छी रण्डी कैसी कैसी बाते करती है ! मेरे बेटे पर नजर डाली तो मुंह नोच लुन्गी
मालकिन मैं क्या करुन्गी, छोटे मालिक खुद ही कुछ ना कुछ कर देन्गे
वो क्यों करेगा रे॥॥॥।वो कुछ नही करने वाला
मालकिन बडा मस्त हथियार है छोटे मालिक का, गांव की छोरियां छोडने वाली नही
हरामजादी, छोरियों की बात छोड मुझे तो लगता है तु ही उसको नही छोडेगी, शरम कर बेटे की उमर का है
हाय मालकिन औजार देख के तो सब कुछ भुल जाती हु मैं!
इतनी देर से अपने बेटे की बढाई सुन-सुन के शीला देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी। उसने आखिर आया से पुछ ही लिया,,,,
" कैसे देख लिया तुने मुन्ना का। "


आया ने अन्जान बनते हुए पुछा, "मुन्ना बाबु का क्या मालकिन। "


फिर आया को चौधराईन की एक लात खानी पडी, फिर चौधराईन ने हसते हुए कहा,
" कमीनी सब समझ के अन्जान बनती है। "


आया ने भी हसते हुए कहा,
" मालकिन मैने तो सोचा की आप अभी तो बेटा बेटा कर रही थी फिर उसके औजार के बारे में कैसे पुछोगी ?। "


आया की बात सुन कर चौधराईन थोडा शरमा गई। उसकी समज में ही नही आ रहा था की क्या जवाब दे. वो आया को, फिर भी उसने थोडा झेपते हुए कहा,
" साली मैं तो ये पुछ रही थी की तुने कैसे देख लिया. '


" मैने बताया तो था मालकिन की छोटे मालिक जीधर गांव की औरतें दिशा-मैदान करने जाती है, उधर घुमते रहते है, फिर ये साली बसन्ती भी उनपे लट्टु हुइ बैठी है। एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झडियों में खुशुर पुसुर की अवाज आ रही है। मैने सोचा देखु तो जरा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताउ, मुन्ना बाबु और बसन्ती दोनो खुशुर पुसुर कर रहे थे। मुन्ना बाबु का हाथ बसन्ती की चोली में और बसन्ती का हाथ मुन्ना बाबु की हाफ पेन्ट में घुसा हुआ था। मुन्न बाबु रिरयाते हुए बसन्ती से बोल रहे थे, ' एक बार अपना माल दिखा दे. ' और बसन्ती उनको मना कर रही थी। "

इतना कह कर आया चुप हो गई और एक हाथ से शीला देवी की चुची दबाते हुए अपनी उन्गलियां चुत के अन्दर तेजी से घुमाने लगी। शीला देवी सिसकारते हुए बोली,
" हा, फिर क्या हुआ, मुन्ना ने क्या किया। " चौधराईन के अन्दर अब उत्सुकता जाग उठी थी.


" मुन्ना बाबु ने फिर जोर से बसन्ती की एक चुची को एक हाथ में थाम लिया और दुसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जांघो के बिच रख के पुरी मुठ्ठी में उसकी चुत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले, ' हाय दीखा दे एक बार, चखा दे अपनी लालमुनीया को बस एक बार रानी फिर देख मैं इस बार मेले में तुझे सबसे महंगा लहंगा खरीद दुन्गा, बस एक बार चखा दे रानी॑. ' , इतनी जोर से चुची दबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी छोटे मालिक के हाथ को हटाने की उसने कोशीश नही की, खाली मुंह से बोल रही थी, ' हाय छोड दो मालिक. छोड दो मालिक. ' मगर छोटे मालिक हाथ आई मुर्गी को कहां छोडने वाले थे। "


शीला देवी की बुर एक पसीज रही थी, अपने बेटे की करतुत सुन कर उसे पता नही क्यों गुस्सा नही आ रहा था। उसके मन में एक अजीब तरह का कौतुहल भरा हुआ था। आया भी अपनी मालकिन के मन को खुब समझ रही थी इसलिये वो और नमक मिर्च लगा कर मुन्ना की करतुतों की कहानी सुनाये जा रही थी।


" फिर मालकिन मुन्ना बाबु ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले, ' बहुत मजा आयेगा रानी बस एक बार चखा दो, हाय जब तुम गांड मटका के चलती हो तो क्या बताये कसम से कलेजे पर छूरी चल जाती है, बसन्ती बस एक बार चखा दो॑. ' बसन्ती शरमाते हुए बोली, ' नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जायेगी॑, ' इस पर मुन्ना बाबु ने कहा, ' हाथ से पकडने पर तो मोटा लगता ही है, जब चुत में जायेगा तो पता भी नही चलेगा॑. ' फिर बसन्ती के हाथ को अपनी नीकर से निकाल के उन्होंने झट से अपनी नीकर उतार दी, हाय मालकिन क्या बताउ कलेजा धक-से मुंह को आ गया, बसन्ती तो चीख कर एक कदम पिछे हट गई, क्या भयंकर लौडा था मालिक का एक दम से काले सांप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाडी आलु के जैसा नुकिला गुलाबी सुपाडा और मालकिन सच कह रही हु कम से कम १० इंच लम्बा और कम से कम २.५ इंच मोटा लौडा होगा छोटे मालिक का, उफफ ऐसा जबरदस्त औजार मैने आज तक नही देखा था, बसन्ती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वहीं खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर छोटे मालिक का लंड उसकी चुत में नही जाता. "

चौधराईन एक टक गौर से अपने बेटे की काली करतुतों का बखान सुन रही थी। उसका बदन काम-वासना से जल रहा था और आया की वासना भरी बातें जो कहने को तो उसके बेटे के बारे में थी पर फिर भी उसके अन्दर एक अनोखी कसक पैदा कर रही थी। आया को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पुछ बैठी,
"आगे क्या हुआ। "


आया ने फिर हसते हुए बताया, " अरे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झाडियों में सुरसुराहट हुई, मुन्ना बाबु तो कुछ समझ नही पाये मगर बसन्ती तो चालु है, मालकिन, साली झट से लहंगा समेट कर पिछे की ओर भागी और गायब हो गई। और मुन्ना बाबु जब तक सम्भलते तब तक उनके सामने बसन्ती की भाभी आ के खडी हो गई। अब आप तो जानती ही हो की इस साली लाजवन्ती ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शरम की औरत है। जब साली बसन्ती की उमर की थी और नई नई शादी हो के गांव में आई थी तब से उसने २ साल में गांव के सारे जवान मर्दों के लंड का पानी चख लिया होगा। अभी भी हरामजादी ने अपने आप को बना संवार के रखा हुआ है। " इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई।


" फिर क्या हुआ, लाजवन्ती तो खुब गुस्सा हो गई होगी. "

"अरे नही मालकिन, उसे कहां पता चला की अभी अभी २ सेकंड पहले मुन्ना बाबु अपना लंड उसकी ननद को दिखा रहे थे। वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुइ थी। उसने जब मुन्ना बाबु का बलिश्त भर का खडा मुसलंड देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया और मुन्ना बाबु को पटाने के इरादे से बोली ॑यहां क्या कर रहे है छोटे मालिक आप कब से हम गरिबों की तरह से खुले में दिशा करने लगे॑। छोटे मालिक तो बेचारे हक्के बक्के से खडे थे, उनकी समझ में नही आ रहा था की क्या करें, एक दम देखने लायक नजारा था। हाफ पेन्ट घुटनो तक उतरी हुइ थी और शर्ट मोड के पेट पर चढा रखी थी, दोनो जांघो के बिच एक दम काला भुजंग मुसलंड लहरा रहा था ।"


" छोटे मालिक तो बस. ' उह आह उह ' कर के रह गये। तब तक लाजवन्ती छोटे मालिक के एक दम पास पहुंच गई और बिना किसी जिझक या शरम के उनके हथियार को पकड लिया और बोली, 'क्या मालिक कुछ गडबड तो नही कर रहे थे पुरा खडा कर के रखा हुआ है। इतना क्यों फनफना रहा है आपका औजार, कहीं कुछ देख तो नहि लिया॑। ' इतना कह कर हसने लगी ।"


छोटे मालिक के चेहरे की रंगत देखने लायक थी। एक दम हक्के-बक्के से लाजवन्ती का मुंह ताके जा राहे थे। अपना हाफ पेन्ट भी उन्होंने अभी तक नही उठाया था। लाजवन्ती ने सीधा उनके मुसल को अपने हाथो में पकड लिया और मुस्कुराती हुइ बोली ॑क्या मालिक औरतन को हगते हुए देखने आये थे क्या॑ कह कर खी खी कर के हसते हुए मुन्ना बाबु के औजार को ऐसे कस के मसला साली ने की उस अन्धेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाडी आलु जैसा सुपाडा एक दम से चमक गया जैसे की उसमें बहुत सारा खून भर गया हो और लौडा और फनफना के लहरा उठा।


 बडी हरामखोर है ये लाजवन्ती, साली को जरा भी शरम नही है क्या


जिसने सारे गांव के लौंडो क लंड अपने अन्दर करवाये हो वो क्या शरम करेगी


फिर क्या हुआ, मेरा मुन्ना तो जरुर भाग गया होगा वहां से बेचारा

मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी २ मीनट पहले आपको बताया था की आपका लाल बसन्ती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा समझ रही हो, जबकी उन्होंने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा

चौधराईन एक दम से चौंक उठी, "क्या कर दिया, क्यों बात को घुमा फिरा रही है"


"वही किया जो एक जवान मर्द करता है "


"क्यों झुट्त बोलती हो, जलदी से बताओ ना क्या किया" ,
" छोटे मालिक में भी पुरा जोश भरा हुआ था और उपर से लाजवन्ती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया। लाजवन्ती बोली छोरियों को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारी में थे क्या, या फिर किसी लौन्डिया के इन्तेजार में खडा कर रखा है॑ मुन्ना बाबु क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख से लग रहा था की उनकी सांसे तेज हो गयी है। उन्होंने भी अब की बार लाजवन्ती के हाथो को पकड लिया और अपने लंड पर और कस के चीपका दिया और बोले हाय भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था॑ इस पर वो बोली ॑तो फिर खडा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुछ चाहीये क्या॑ मुन्ना बाबु की तो बांछे खिल गई। खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था। झट से बोले चाहीये तो जरुर अगर तु दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दुन्गा॑। खुशी के मारे तो साली लाजवन्ती क चेहरा चमकने लगा, मुफ्त में मजा और माल दोनो मिलने के आसार नजर आ रहे थे। झट से वहीं पर घास पर बैठ गई और बोली ॑हाय मालिक कितना बडा और मोटा है आपका, कहां कुवांरीओ के पिछे पडे रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औजार है, बसन्ती तो साली पुरा ले भी नही पायेगी॑ छोटे मालिक बसन्ती का नाम सुन के चौंक उठे की इसको कैसे पता बसन्ती के बारे में। लाजवन्ती ने फिर से कहा ॑ कितना मोटा और लम्बा है, ऐसा लौडा लेने की बडी तमन्ना थी मेरी॑ इस पर छोटे मालिक ने नीचे बैठ ते हुए कहा आज तमन्ना पुरी कर ले, बस चखा दे जरा सा, बडी तलब लगी है॑ इस पर लाजवन्ती बोली जरा सा चखना है या पुरा मालिक॑ तो फिर मालिक बोले हाय पुरा चखा दे मेले से तेरी पसंद की पायल दिलवा दुन्गा॑।


आया की बात अभी पुरी नही हुइ थी की चौधराईन बिच में बोल पडी "ओह मेरी तो किस्मत ही फुट गई, मेरा बेटा रण्डीयों पर पैसा लुटा रहा है, किसी को लहंगा तो किसी हरामजादी को पायल बांट रहा है, " कह कर आया को फिर से एक लात लगायी और थोडे गुस्से से बोली, "हरामखोर, तु ये सारा नाटक वहां खडी हो के देखे जा रही थी, तुझे जरा भी मेरा खयाल नही आया, एक बार जा के दोनो को जरा सा धमका देती दोनो भाग जाते।" आया ने मुंह बिचकाते हुए कहा, "शेर के मुंह के आगे से निवाला छिनने की औकात नही है मेरी मालकिन मैं तो बुस चुप चाप तमाशा देख रही थी।" कह कर आया चुप हो गई और बुर की मालिश करने लगी। चौधराईन के मन की उत्सुकता दबाये नही दब रही थी कुछ देर में खुद ही कसमसा कर बोली, " चुप क्यों हो गई आगे बता ना "
" फिर क्या होना था मालकिन, लाजवन्ती वहीं घास पर लेट गई और छोटे मालिक उसके उपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे। कभी वो उपर कभी मालिक उपर। छोटे मालिक ने अपना मुंह लाजवन्ती की चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहेंगे को उपर उठा के उसकी बुर में उन्गली दाल दी, लाजवन्ती के हाथ में मालिक का मोटा लौडा था और दोनो चिपक चिपक के मजा लुटने लगे। कुछ देर बाद छोटे मालिक उठे और लाजवन्ती की दोनो टांगो के बिच बैठ गये। उस छिनाल ने भी अपनी साडी को उपर उठा दिया और दोनो टांगो को फैला दिया। मुन्ना बाबु ने अपना मुसलंड सीधा उसकी चुत के उपर रख के धक्का मार दिया। साली चुद्दकडी एक दम से मीमीयाने लगी। ईतना मोटा लौडा घुसने के बाद तो कोइ कितनी भी बडी रण्डी हो उसकी हेकडी तो एक पल के लिये गुम हो ही जाती है। पर मुन्ना बाबु तो नया खून है, उन्होंने कोइ रहम नही दिखाया, उलटा और कस कस के धक्के लगाने लगे. "


" ठिक किया मुन्ना ने, साली रण्डी की यही सजा है. " चौधराईन ने अपने मन की खून्नस निकाली, हालांकी उसको ये सुन के बडा मजा आ रहा था की उसके बेटे के लौडे ने एक रण्डी के मुण्ह से भी चीखे निकलवा दी।


" कुछ धक्को के बाद तो मालकिन साली चुदैल ऐसे अपनी गांड को उपर उछालने लगी और गपा गप मुन्ना बाबु के लौडे को निगलते हुए बोल रही थी, ' हाय मालिक फाड दो, हाय ऐसा लौडा आज तक नही मीला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही चौधरी के पोते को पैदा करुन्गी, मारो कस कस के॑..' मुन्ना बाबु भी पुरे जोश में थे, गांड उठा उठा के ऐसा धक्का लगा रहे थे की क्या कहना, जैसे चुत फाड के गांड से लौडा निकाल देंगे, दोनो हाथ से चुचीयां मसल रहे थे और, पका पक लौडा पेल रहे थे। लाजवन्ती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी, ' मालिक पायल दिलवा देना फिर देखना कीतना मजा करवाउन्गी, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लंड वाले मालिक को अब नही तरसने दुन्गी, जब बुलओगे चली आउन्गी, हाय मालिक पुरे गांव में आपके लंड के टक्कर का कोई नही है॑।' " इतना कह कर आया चुप हो गई।
आया ने जब लाजवन्ती के द्वारा कही गई ये बात की, पुरे गांव में मुन्ना के लंड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधराईन के माथे पर बल पड गये। वो सोचने लगी की क्या सच में ऐसा है। क्या सच में उसके लडके का लंड ऐसा है, जो की पुरे गांव के लंडो से बढ कर है। वो थोडी देर तक चुप रही फिर बोली, " तु जो कुछ भी मुझे बता रही है वो सच है ना ? "


" हां मालकिन सौ-फीसदी सच बोल रही हु. "


" फिर भी एक बात मेरी समझ में नही आती की मुन्ना का इतना बडा कैसे हो सकता है जितना बडा तु बता रही है. "


" क्यों मालकिन ऐसा क्यों बोल रही हो आप ? "


" नही ऐसे ही मैं सोच रही हु इतना बडा आम तौर पे होता तो नही, फिर तेरे मालिक के अलावा और किसी के साथ ,,,,,,," बात अधुरी छोड कर चौधराईन चुप हो गई।


आया सब समझ गई और धीरे से मुस्कुराती हुइ बोली, " अरे मालकिन, कोइ जरुरी थोडे ही है की जीतना बडा चौधरी साहब का होगा उतना ही बडा छोटे मालिक का भी होगा, चौधरी साहब का तो कद भी थोडा छोटा ही है मगर छोटे मालिक को देखो इसी उमर में पुरे ६ फीट के हो गये है।" बात थोडी बहुत चौधराईन के भेजे में भी घुस गई, मगर अपने बेटे के अनोखे हथियार को देखने की तमन्ना भी शायद उसके दिल के किसी कोने में जाग उठी थी।
मुन्ना उसी समय घर के आंगन से मां ,,,, मां,,,, पुकारता हुआ अपनी मां के कमरे की ओर दौडता हुआ आया और पुरी तेजी के साथ भडाक से चौधराईन के कमरे के दरवाजे को खोल के अन्दर घुस गया। अन्दर घुसते ही उसकी आंखे चौंधिया गई। कलेजे पर जैसे बिजली गीर गई। मुंह से बोल नही फुट रहे थे। चौधराईन लगभग पुरी नंगी और आया अधनंगी हो के बैठी थी। मुन्ना की आंखों ने एक पल में ही अपनी मां का पुरा मुआयना कर डाला। ब्लाउस खुला हुआ था दोनो बडी बडी गोरी गोरी नारियल के जैसी चुचियां अपनी चोंच को उठाये खडी थी , साडी उपर उठी हुइ थी और मोटे मोटे कन्दील के खम्भे जैसी जांघे ट्युब लैट की रोशनी में चमक रही थी। काले घने झाण्टों के जंगल में घीरी चुत तो नही दीख रही थी मगर उन झांटों के उपर लगा चुत का रस अपनी कहानी बयान कर रहा था। ना तो आया ना ही चौधराईन के मुंह से कोई कुछ निकला। कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद आया को जैसे कुछ होश आया उसने जलदी से जांघो पर साडी खींच दी और साडी के पल्लु से दोनो चुचियों को ढक दिया। अपने नंगे अंगो के ढके जाने पर चौधराईन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेट ते हुए उठ कर बैठ गई। चुचियों को अच्छी तरह से ढकते हुए झेंप मिटाते हुए बोली,
" क्या बात है मुन्ना, क्या चाहीये।"


मां की आवाज सुन मुन्ना को भी एक झटका लगा और उसने अपना सर नीचे करते हुए कहा,
" कुछ नही मैं तो पुछने आया था की, शाम में फंकशन कब शुरु होगा मेरे दोस्त पुछ रहे थे. "


शीला देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी और अब उसके अंदर ग्लानि और गुस्सा दोनो भावो पैदा हो गये थे। उसने धीमे स्वर में जवाब दिया,
" तुझे पता नही है क्या जो ६-७ बजे से फंकशन शुरु हो जायेगा। और क्या बात थी. "


" वो मुझे भूख भी लगी थी. "


" तो नौकरानी से मांग लेना था, जा उस को बोल के मांग ले. "


मुन्ना वहां से चला गया। आया ने झट से उठ कर दरवाजा बन्ध किया और चौधराईन ने अपने कपडे ठीक किये। आया बोलने लगी की,
" दरवाजा तो ठीक से बन्ध ही था मगर लगता है, पुरी तरह से बन्ध नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की जरुरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर आपके कमरे में तो कोइ आता नही, "


" चल जाने दे जो हुआ सो हुआ क्या कर सकते है. "
इतना बोल कर चौधराईन चुप हो गई मगर उसके मन में एक गांठ बन गई और अपने ही बेटे के सामने नंगे होने का अपराधबोध उस पर हावी हो गया।
 
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